
राजनांदगांव 16 जुलाई। जैन मुनि विनय कुशल जी के सुशिष्य वीरभद्र ( विराग) मुनि ने कहा कि भगवान को हमेशा उत्तम से उत्तम वस्तु ही अर्पित करें। हम जैसी चीज चढ़ाएंगे जीवन वैसा ही पाएंगे। हम बोलते हैं और वह बोलता नहीं है इसलिए हम उसे कैसे भी वस्तु अर्पित कर देते हैं। उन्होंने कहा कि अपक्ष वस्तुएं ( समोसा या अन्य ) जो चढ़ाने योग्य नहीं होती उसे अर्पित ना करें।
जैन बगीचा स्थित उपाश्रय भवन में अपने नियमित प्रवचन के दौरान मुनि श्री वीरभद्र ( विराग) जी ने कहा कि भगवान, ब्राह्मण एवं ज्योतिष के पास कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम भगवान को रोज कुछ अर्पण नहीं कर सकते तो कम से कम महीने में एक बार तो ऐसा कर ही सकते हैं। हालांकि भगवान को किसी भी चीज की कोई जरूरत नहीं है फिर भी द्रव्य अर्पण करने से द्रव्य से भाव जुड़ता है और भाव से आत्मीयता जुड़ती है। समर्थ योग अर्थात कुछ देर में ही केवल ज्ञान की प्राप्ति, यह तभी हो सकता है जब धर्म हमारे स्वभाव में आ जाए। समर्थ योग के वंदन से केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है। आत्मा की पराकाष्ठा में पहुंचने पर समस्त पदार्थ गौण हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि तत्व जब अनुभूति में आ जाए तो वह सम्यक दर्शन हो जाता है। स्वयं को बार-बार जांचे कि अंदर की स्थिति कहां तक पहुंची है।धर्म के प्रति हमारी श्रद्धा जैसी होनी चाहिए आज वैसी नहीं रह गई है।
मुनि श्री ने कहा कि अपने शब्दों पर नियंत्रण रखें। अच्छे शब्द बोले। खराब शब्द जिसमें किसी को दुख/ तकलीफ पहुंचे, ऐसे शब्दों का उपयोग न करें। उन्होंने कहा कि धर्म करने का मौका महापुण्य से मिलता है। भगवान की आज्ञा के खिलाफ न जाएं। जो लगातार बदलते रहे वही संसार है। हम इस संसार को अपना मानते हैं, यह कब आगे खिसक जाएगी कुछ नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि हम किसी से कोई वस्तु लेते हैं तो काम होने के बाद उसे वह वास्तु लौटा देनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि हमें यह हरदम प्रयास करना चाहिए कि हमारे व्यवहार से कोई दुखी ना हो। हमारी जुबान से किसी को ठेस न पहुंचे। उन्होंने कहा कि सोचा हुआ कभी पूरा नहीं होता। कोई भी चीज पकड़ में कभी नहीं रहती। हमारे जीवन में जो भी होता है वह कर्मों की वजह से होता है।
