
जशपुर 5 दिसंबर । रक्तदान महादान कहा जाता है क्योंकि रक्तदान करने से हम अमूल्य जीवन को बचा सकते हैं। इसी राह पर खुद को समर्पित करते हुए जशपुर के समाजसेवी 53 वर्षीय सतेन्द्र पाठक ने अपना जीवन एवं रक्त समाज कल्याण के प्रति समर्पित करते हुए मानवता की अनोखी मिसाल पेश की है। श्री पाठक ने अब तक लगभग अलग-अलग स्थानों पर लगभग 100 बार से ज्यादा निशुल्क रक्दान कर समाज कल्याण में अपना योगदान दे चुके हैं। तथा समाज को भी निशुल्क रक्तदान के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
जीवन व्यापन की डेयरी दुकान को बना दिए समाजसेवा केंद्र…
सत्येंद्र पाठक बताते हैं कि अपने जीवन व्यापन के लिए बस स्टैंड जशपुर स्थित छोटी सी डेयरी दुकान का संचालन करते हैं। जिसके कारण उन्हें जनसंपर्क और समाज कल्याण के लिए उसी दुकान को समाज कल्याण के लिए कार्यालय की तरह उपयोग कर लोगों की समस्याएं सुन उनके कल्याण का भी कार्य वहीं से किया जाता है।
दूध दही की जगह डेयरी से लोगों को मिल रहा रक्त….

जहां डेयरी दुकान में लोगों को दूध दही घी मिलता है वहीं जशपुर में एक अनोखी डेयरी दुकान देखने को मिलती है। जहां लोगों को दुकान में समाजसेवी सतेंद्र कुमार पाठक, जिन्हें लोग सोशल मीडिया पर ‘ब्लड बैंक पाठक’ के नाम से जानते हैं, वो या तो स्वयं रक्तदान कर या अन्य सदस्यों के मध्यम से घंटों के भीतर रक्त दाताओं की व्यवस्था कर पीड़ितों को मदद पहुंचा रहे हैं।
सोशल मडिया से रक्तदान जागरूकता एवं उपलब्धता में मिल रही मदद…
सतेन्द्र पाठक बताते हैं कि वे छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार सहित कई राज्यों से जुड़े व्हाट्सऐप व सोशल मीडिया ग्रुपों में सक्रिय रहते हैं। इससे जरूरत पड़ते ही वे मरीज का नाम, पता और ब्लड ग्रुप साझा कर मदद जुटाते हैं। अक्सर उनका एक मैसेज ही किसी गंभीर मरीज के लिए संजीवनी साबित होता है। उनकी दुकान वर्षों से उनका “सेवा केंद्र” है। दुकान चलाते हुए वे निरंतर रक्तदान अभियान भी संचालित करते हैं। उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया के माध्यम से अब जन जन तक रक्तदान के लिए जागरूकता संदेश पहुंचाने में उन्हें बहुत मदद मिलती है। जहां कुछ ही समय में सभी रक्तदाता सदस्यों तक संदेश पहुंचाना बहुत ही आसान हो गया है जिससे पीड़ित लोगों तक तत्काल मदद पहुंचाने में समस्या का सामना नहीं करना पड़ता।
रक्तदान महादान जन जागरूकता में 1998 से कर रहे सतत् प्रयास…..

सतेंद्र पाठक बताते हैं कि एक समय कई मरीजों को समय पर रक्त न मिलने से परेशान देखते-देखते उनके भीतर सेवा का जज़्बा जागा। वे तब छात्र संगठन से जुड़े थे और निजी व्यवसाय की भी शुरुआत नहीं की थी।
वर्ष 1998 में कल्याण आश्रम संस्था से जुड़े जहां डॉ. पंकज भाठिया, कृपा प्रसाद सिंह, शांतनु जी के द्वारा पांच सदस्यीय गहिरा गुरु रक्त संघ बनाया गया। जिसमें सदस्य के रूप में शामिल हो कर संघ के माध्यम से रक्तदान सेवा में सक्रिय हो गए। तब से लेकर आज तक वे सैकड़ों बार रक्तदान कर चुके हैं और अनगिनत मरीजों को समय पर रक्त उपलब्ध कराया है।
वे बताते हैं“ब्लड दिलाना आसान नहीं होता, लेकिन कोशिश यही रहती है कि जरूरतमंद तक हर हाल में मदद पहुँचे। रक्तदान करें और दूसरों को भी प्रेरित करें एक यूनिट रक्त किसी की जिंदगी बचा सकता है।
मां की डांट के बावजूद बिना बताए करते थे रक्तदान….
श्री पाठक मुस्कुराते हुए कहते हैं “माँ डांटती थीं कि लोग मुझे बार-बार बुलाकर रक्तदान करवा कर थका देते हैं, लेकिन मां की डांट से बचने के लिए मां से बिना बताए ही वे रक्तदान कर आते थे। इस पर उनका कहना था कि जब कोई जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा हो, तो पीछे हटना कैसे संभव है?” सतेंद्र पाठक लोगों से अपील करते हैं “हर व्यक्ति साल में कम से कम तीन बार रक्तदान करे। वे छत्तीसगढ़ ही नहीं, झारखंड के तपकारा, रांची, रायगढ़ आदि स्थानों में भी कई बार स्वयं रक्तदान कर चुके हैं। शरीर को नुकसान नहीं होता, बल्कि किसी की अनमोल जिंदगी बचाई जा सकती है। यह सबसे बड़ा पुण्य है ।
